ब्रज-रज महिमा और गौ -सेवा
इस ब्रज-रज की महिमा कौन कहे ? 5000 वर्ष पूर्व भगवान श्री कृष्ण
-किशोरीजी , ललिता -विशाखा आदि अष्ट-सखियों , सभी गोपियों, श्री यमुनाजी
और पवित्र गौओं की चरण-धूलि से यह परम पवित्र है . स्वयं भगवान श्री
कृष्ण श्री मुख से घोषणा कर रहे हैं " वृन्दावनं परित्यज्य पाद्मेकं
न गच्छति " . स्वयं भगवान शिवजी भी गोपेश्वर रूप धारण कर वंशीवट में
महा-रास में सम्मिलित होते हैं . पार्वतीजी देवी कात्यायिनी के रूप में
यहाँ निवास करती हैं. साक्षात् वृंदा-देवी नित्य-लीला की सखी हैं ही .
श्री यमुना जी साक्षात् दिव्य सखी हैं और संत उषाजी के शब्दों में श्री
यमुनाजी श्री कृष्ण प्रेम प्रवाहिनी हैं ,श्री कृष्ण प्रेम प्रदायिनी
हैं. वृन्दावन की महान संत श्री उषाजी गा रही हैं :-
हे भानुजा , हे स्वामिनी ,
हे कृष्ण , मन अभि रामिनी
करके कृपा करुणा मयी
हे रसमयी ममता मयी
श्री कृष्ण रति - रस का दान दो
प्रिय रूप रस का पान दो
उनका चिरंतन संग दो
रस रंग केलि अभंग दो
हे कृष्ण , मन अभि रामिनी
करके कृपा करुणा मयी
हे रसमयी ममता मयी
श्री कृष्ण रति - रस का दान दो
प्रिय रूप रस का पान दो
उनका चिरंतन संग दो
रस रंग केलि अभंग दो
मैं आपको ले चलता हूँ करीब उन्नीस वर्ष पूर्व 1990 में . श्री राधाष्टमी पर श्री राधा बाबा- भाई पोद्दार जी - श्री बालकृष्ण दास महाराजी के सेवक श्री मनोहर बाबा बरसाना आये थे और इस बार प्रोग्राम था नंदगाँव , गोकुल आदि जाने का संत उषाजी -शीलाजी के सेव्य ठाकुर श्री उत्सव -विहारी व् परिकर के साथ. एक दिन नंदगाँव मंदिर की सीढियां चढ़ते - चढ़ते बाबा भाव-विभोर हो गए और बोले ये वही गलियाँ हैं जहाँ 5000 वर्ष पूर्व साक्षात् भगवान श्री कृष्ण - भैया बलरामजी विचरण करते थे और आज भी करते हैं . उन्हीं के चरणों की रज से आज ब्रज रज सबकी वन्दनीय है और देवता , नाग , गन्धर्व भी इसकी याचना करते है. ज्ञानी उद्धव भी यही प्रार्थना करते हैं कि मैं दिव्य धाम वृन्दावन में कोई लता -पता ही बन जाऊं ! दिव्य वंशी-रव को यह ब्रज-रज अपने में संजोये है . यहाँ के जो वृक्ष हैं वे महात्मा ही हैं और साधना में लीन हैं . निधि वन और सेवा -कुञ्ज के वृक्ष तो साक्षात् गोपी-रूप ही हैं और श्री बिहारीजी व् श्री किशोरीजी की दिव्य लीलाओं के साक्षी हैं . ब्रज रज से पालित -पूरित और पल्लवित ये वृक्ष कई साधकों को प्रेरणा देते हैं और उनके नीचे बैठकर आज भी कई साधक नियम पूर्वक कई कई हरे-राम और महा मंत्र की माला कर धन्यता का अनुभव करते हैं. श्री बिहारीजी के मंदिर में , श्री राधा वल्लभ जी के आंगन में , श्री राधा रमण जी के यहाँ , साथ में ही स्थित श्री राधा-दामोदर मंदिर में कितने ही भक्त साक्षी हैं कि स्वयं भगवान ही यहाँ ब्रज में विचरण करते रहते हैं और हम सभी इस रज को प्रणाम कर धन्य होते रहते हैं. मां यशोदा को सत्य ही कह रहे हैं कि माँ मैने माटी नहीं खायी अर्थात यह तो ब्रज-रज है प्रणम्य है , कोई साधारण मिट्टी थोडे ही है ! स्वयं उसे मुख में रखकर कृतज्ञता प्रकट करते हैं. असंख्य भक्त आज भी श्री गिरिराज - वृन्दावन - ब्रज-भूमि की रज की पुडिया अपने पूजा -गृह में रखते हैं और प्रातः उठकर उसे प्रणाम करते हैं , मस्तक पर धारण करते हैं , तिलक लगते हैं. अनेक भवरोगों की औषधि है यह !
जहाँ तक गौ -महिमा का प्रश्न है हर महीने जो "कल्याण" आता है और साधकों के पत्र छपते हैं उनमें होते हैं कैसे नाम ने कृपा की , कैसे श्री हनुमानजी ने कृपा की और कैसे गौ-माता ने कृपा की . अर्थात गौएँ परम कृपालु हैं. गौयें साक्षात् देव हैं, कल्पवृक्ष के समान फलदायी हैं . श्रीमद भागवत में स्पष्ट वर्णन है की जब पृथ्वी पर राजा बेन के अत्याचारों से सब कुछ लुप्त हो गया साक्षात् श्री हरि ने ही पृथु-अवतार धारण कर पृथ्वी रुपी गाय को दुहा और एक-एक कर सभी पदार्थ प्राप्त किये . अतः आज जो भी हमें सुलभ है गौ-माता की कृपा से ही प्राप्त हुआ है . गोस्वामी तुलसीदासजी भी गा रहे हैं " गौ धेनु देव हितकारी" अर्थात एक संकेत पृथ्वी रुपी गाय व् दूसरा धेनु-रुपी गौ माता के लिए है . धन्य है सिद्ध भक्तों की साकूत सूत्रों में वर्णित गौ-महिमा.
जहाँ तक गोपियों का प्रश्न है नारद भक्ति-सूत्र में स्वयं देवर्षि नारदजी उन्हें प्रेम की ध्वजा घोषित कर रहे हैं. दशम स्कंध में भगवान स्वयं श्रीमुख से कह रहे हैं की गोपियों का प्रेम इतना अलौकिक है कि मैं स्वयं भी इससे उऋण नहीं हो सकता. "कल्याण" के आदि-संपादक भाई पोद्दार जी अपनी टीका में लिखते हैं की ये कोई साधारण गोपियाँ नहीं हैं वरन युगों-युगों की तपस्या के पश्चात् परम सिद्ध ऋषि- मुनि हैं जो ब्रज-रस की लालसा में द्वापर में अवतार लेते हैं. कई तो श्री राम अवतार की मिथिला , जनकपुरी और अन्य क्षेत्रों की सखियाँ हैं जो मर्यादा के कारण श्री कृष्णावतार में श्री अलि -परिकर बन कर आईं. काल के प्रभाव से यहाँ की कई स्थलियाँ लोप हो चुई थीं आज से लगभग 500 वर्ष पूर्व साक्षात् प्रेमावतार श्री चैतन्य महाप्रभु ने अपने अन्तरंग भक्तों को भेजकर ब्रज की स्थलियों को पुनः प्रकट कराया . स्वयं चैतन्य महाप्रभु भी ब्रज आये और राधा कुंड को तो स्वयं ही प्रकट किया . इसी प्रकार पुष्टि-मार्ग के प्रणेता महाप्रभु श्री वल्लाभाचर्यजी भी ब्रज आये व् जहाँ-तहां भ्रमण कर ब्रज भूमि मोहिनी के महत्व को प्रकट किया व् ब्रज चौरासी कोस की परिक्रमा की परिपाटी चलाई जो आज भी चल रही है स्वामी हरि दासजी ने बिहारीजी व् हित हरिवंश जी ने राधावल्लभ जी को प्रकट कर तो मानों ब्रज रज को संतों -महात्माओं का आराध्य ही घोषित कर दिया. साक्षात् प्रेम-रूपा मीरा बाई भी कई वर्षों तक ब्रज में रहीं व् सूरदासजी , अष्ट-छाप के कवियों का तो आधार ही ब्रज-भूमि है . श्रीनाथजी यहीं प्रकट हुए गिरिराजजी की तलहटी में . एक बार श्री रामचरितमानस के प्रणेता गोस्वामी तुलसीदासजी का भी ब्रज में आने का वर्णन मिलता है.
अतः ब्रज-रज में न केवल भगवान श्री कृष्ण -किशोरीजी , यमुनाजी के पवित्र बालू , गोपियों , ब्रजवासियों और पवित्र गौओं की चरण-धूलि सम्मिलित है वरन चैतन्य महाप्रभु - वल्लभाचार्यजी सरीखे युगाव्तारों की पवित्र धूलि से यह और प्रणम्य हो गयी है . न केवल रूप-सनातन गोस्वामी , गौडीय संप्रदाय , पुष्टि-मार्ग , राधा वल्लभ संप्रदाय के अनेक महात्मा इसमें लोट लगाते हैं वरन कई अन्य उच्च कोटि के महात्मा भी स्थायी ब्रज-वास कर ब्रज रज को ही अपना परम गुरु मानते हैं . साक्षात् विष्णुजी के , प्रिया -प्रियतम के दर्शन करने वाले युग-पुरुष भाई पोद्दारजी भी यहाँ आये . एक बार प्रातः -स्मरणीय श्री राधा बाबा भी आये थे और अपने स्थायी निवास गोरखपुर में भी बाबा ब्रज-रज वटी का सेवन निरंतर करते थे. पूज्य पाद श्री देवरिया बाबा , माँ आनंदमयी , श्री हरि बाबा-उड़िया बाबा , स्वामी श्री शरण आनंदजी महाराज, ठाकुर सीताराम ओंकार नाथ जी महाराज , श्री रामदास जी महाराज , पूज्य पंडित गयाप्रसादजी महाराज, भक्तमालीजी, गोस्वामी ललिता चरण जी महाराज , गौरांग दास बाबा , शचीनंदन बाबा , प्रिया शरण जी महाराज , कृपासिंधु दास जी महाराज , मदन मोहन दासजी , गोस्वामी बिंदुजी , प्रभुदत्त ब्रहाम्चारीजी , स्वामी अखंडा नन्द सरस्वतीजी , मुकुंद हरिजी श्री श्री पाद बाबा , श्री आनंददास बाबा , श्री जती जी महाराज , श्री दुर्गी माँ , अपने श्री श्रीमहाराजजी , घनश्याम ठाकुरजी , पूज्य श्री मनोहर बाबा , संत उषाजी -संतोष बहिनजी-धर्म बहिनजी -ललितजी - आदि की ब्रज-निष्ठा तो प्रसिद्ध ही है . वेणु-विनोद कुञ्ज में विराजित ब्रज-निष्ठा की साक्षात् प्रतिमा रमा देवीजी , कुसुम जी , मनोरमाजी, गौरा कालोनी , धाम वृन्दावन में हमारी पूजनीया शीला बहिनजी के दर्शन तो आज भी हम सबको हो रहे हैं .
और भी कई कोटि-कोटि महात्मा हैं जिन्होनें ब्रज-रज को ही एकमात्र अपना आधार माना पर जिनका जीवन-चरित अभी तक गुप्त ही है. पर भक्तमाल , 256 वैष्णवन की वार्ता , ब्रज के भक्त , ब्रज भूमि मोहिनी जैसे दिव्य ग्रंथों , मासिक "कल्याण" , विशेषांकों , अन्य स्थानों से प्रकाशित दिव्य -साहित्य से कुछ -कुछ ब्रज रज महिमा समझ में आती है . ऐसी दिव्य , साक्षात् श्री कृष्ण कृपा-रूपा ब्रज रज को बारम्बार कोटि-कोटि प्रणाम है . उन्ही की कृपा से ब्रज-रज की थोड़ी बहुत महिमा का ज्ञान हो सकता है . बोलिए ब्रज-रज और उसमें नित्य विहार करने वाले प्रिया - प्रियतम की जय . बोलिए , वृन्दावन -विहारी लाल की जय.
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