यह स्थान मथुरा जनपद में ब्रजमंडल के पूर्वी छोर पर स्थित है। मथुरा से 21 कि॰मी॰ दूरी पर एटा-मथुरा मार्ग के मध्य में स्थित है। मार्ग के बीच में गोकुल एवं महावन जो कि पुराणों में वर्णित वृहद्वन के नाम से विख्यात है, पड़ते हैं। यह स्थान पुराणोक्त विद्रुमवन के नाम से निर्दिष्ट है। इसी विद्रुभवन में भगवान श्री बलराम जी की अत्यन्त मनोहारी विशाल प्रतिमा तथा उनकी सहधर्मिणी राजा ककु की पुत्री ज्योतिष्मती रेवती जी का विग्रह है। यह एक विशालकाय देवालय है जो कि एक दुर्ग की भाँति सुदृढ प्राचीरों से आवेष्ठित है। मन्दिर के चारों ओर सर्प की कुण्डली की भाँति परिक्रमा मार्ग में एक पूर्ण पल्लवित बाज़ार है। इस मन्दिर के चार मुख्य दरवाजे हैं, जो क्रमश: सिंहचौर, जनानी ड्योढी, गोशाला द्वार या बड़वाले दरवाज़े के नाम से जाने जाते हैं। मन्दिर के पीछे एक विशाल कुण्ड है जो कि बलभद्र कुण्ड के नाम से पुराण वर्णित है। आजकल इसे क्षीरसागर के नाम से पुकारते हैं।
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