Wednesday, October 5, 2011

इतिहास ,महावन / Mahavan

महावन मथुरा-सादाबाद सड़क पर मथुरा से 11 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। यह एक प्राचीन स्थान है। महावन नाम ही इस बात का द्योतक है कि यहाँ पर पहले सघन वन था। मुग़ल काल में सन 1634 ई॰ में सम्राट शाहजहाँ ने इसी वन में चार शेरों का शिकार किया था। सन 1018 ई॰ में महमूद ग़ज़नवी ने महावन पर आक्रमण कर इसको नष्ट भ्रष्ट किया था। इस दुर्घटना के उपरान्त यह अपने पुराने वैभव को प्राप्त नहीं कर सका।
  • मिनहाज नामक इतिहासकार ने इस स्थान को शाही सेना के ठहरने का स्थान बताया है।
  • सन 1234 ई॰ में सुल्तान अल्तमश ने कालिन्जर की ओर जो सेना भेजी थी वह यहाँ ठहरी थी।
  • सन 1526 ई॰ में बाबर ने भी इस स्थान के महत्व को स्वीकार किया था।
  • अकबर के शासनकाल में यह आगरा सरकार के अन्तर्गत 33 महलों में से एक महल था।
  • सन 1803 ई॰ में यह अलीगढ़ ज़िले का एक भाग था।
  • सन 1832 ई॰ में यह फिर मथुरा ज़िले में मिला दिया गया। अँग्रेजी शासन में यहाँ तहसील थी।
  • सन 1910 ई॰ में तहसील मथुरा को स्थानान्तरित कर दी गई।
  • बौद्धकाल में भी एक महत्व की जगह रही होगी। फ़ाह्यान नामक चीनी यात्री ने जिन मठों का वर्णन लिखा है उनमें से कुछ मठ यहाँ भी रहे होंगे क्योंकि उसने लिखा है कि यमुना नदी के दोनों ओर बौद्ध मठ बने हुए थे। बहुत से इतिहासकारों द्वारा यह नगर एरियन और प्लिनी [1] द्वारा वर्णित मेथोरा और क्लीसोबोरा है।
  • महावन में प्राचीन दुर्ग की ऊँची भूमि अब भी देखने को मिलती है जिससे ज्ञात होता है कि यह कुछ तो प्राकृतिक और कुछ कृत्रिम था इस दुर्ग के सम्बन्ध में कहा जाता है कि इसको मेवाड़ के राजा कतीरा ने निर्मित किया था। परम्परागत अनुश्रुतियों से ज्ञात होता है कि राणा मुसलमानों के आक्रमण से मेवाड़ छोड़कर महावन चले आये थे और उन्होंने दिगपाल नामक महावन के राजा के यहाँ आश्रय लिया था। राणा के पुत्र कान्तकुँअर का विवाह दिगपाल की पुत्री के साथ हुआ था और फिर अपने श्वसुर के राज्य का ही वह अन्त में उत्तराधिकारी हुआ। कान्तकुँअर ने अपने पारवारिक पुरोहितों को सम्पूर्ण महावन का पुरोहितत्व प्रदान किया। ये ब्राह्मण सनाढ्य थे। आज भी उन ब्राह्मणों के वंशज चौधरी उपाधि ग्रहण करते हैं और अब भी थोक चौधरीयान के नाम से ये प्रसिद्ध है।
  • आचार्य श्री कैलाशचन्द्र ‘कृष्ण’ के ‘महावन और रमणरेती’ लेख के अनुसार कस्बे में एक स्थान पर ब्रिटिश शासनकाल का शिलालेख है। जिसके द्वारा महावन तथा उसके आसपास में आखेट करना निषिद्ध है। मुग़ल शासक अकबर महान, जहाँगीर, शाहजहाँ आदि शासकों ने भी पुष्टि सम्प्रदाय के गोस्वामियों से प्रभावित होकर इस क्षेत्र में पशु-वध की निषेधाज्ञाएँ प्रसारित की थी।

  • चौरासी खम्भा मन्दिर से पूर्व दिशा में कुछ ही दूर यमुना जी के तट पर ब्रह्मांड घाट नाम का रमणीक स्थल है। यहाँ बहुत सुन्दर पक्के घाट हैं। चारों ओर सुरम्य वृक्षावली, उद्यान एवं एक संस्कृत पाठशाला है। धार्मिक मान्यता के अनुकूल यहाँ श्रीकृष्ण ने मिट्टी खाने के बहाने यशोदा को अपने मुख में समग्र ब्राह्मांड के दर्शन कराये थे। यहीं से कुछ दूर लतवेष्टित स्थल में मनोहारी चिन्ताहरण शिव दर्शन हैं।
  • ब्रिटिश काल में महावन तहसील बन जाने से इस नगर की कुछ उन्नति हुई लेकिन प्राचीन वैभव को यह प्राप्त नहीं कर सका।
  • महावन को औरंगज़ेब के समय में उसकी धर्मांध नीति का शिकार बनना पड़ा था। इसके बाद 1757 ई॰ में अफ़ग़ान अहमदशाह अब्दाली ने जब मथुरा पर आक्रमण किया तो उसने महावन में सेना का शिविर बनाया। वह यहाँ ठहर कर गोकुल को नष्ट करना चाहता था। किंतु महावन के चार हज़ार नागा सन्यासियों ने उसकी सेना के 2000 सिपाहियों को मार डाला और स्वयं भी वीरगति को प्राप्त हुए। गोकुल पर होने वाले आक्रमण का इस प्रकार निराकरण हुआ और अब्दाली ने अपनी फ़ौज वापस बुला ली। इसके पश्चात महावन के शिविर में विशूचिका (हैजा) के प्रकोप से अब्दाली के अनेक सिपाही मर गए। अत: वह शीघ्र दिल्ली लौट गया किंतु जाते-जाते भी इस बर्बर आक्रांता ने मथुरा, वृन्दावन आदि स्थानों पर जो लूट मचाई और लोमहर्षक विध्वंस और रक्तपात किया वह इसके पूर्व कृत्यों के अनुकूल ही था।

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