Friday, February 24, 2012

राधाकुण्ड / Radha Kund

पद्म पुराण में कहा गया है कि जिस प्रकार समस्त गोपियों में राधाजी श्रीकृष्ण को सर्वाधिक प्रिय हैं, उनकी सर्वाधिक प्राणवल्लभा हैं, उसी प्रकार राधाजी का प्रियकुण्ड भी उन्हें अत्यन्त प्रिय है। और भी वराह पुराण में है कि* हे श्रीराधाकुण्ड! हे श्रीकृष्णकुण्ड! आप दोनों समस्त पापों को क्षय करने वाले तथा अपने प्रेमरूप कैवल्य को देने वाले हैं। आपको पुन:-पुन: नमस्कार है इन दोनों कुण्डों का माहत्म्य विभिन्न पुराणों में प्रचुर रूप से उल्लिखित है। श्री रघुनाथदास गोस्वामी यहाँ तक कहते हैं कि ब्रजमंडल की अन्यान्य लीलास्थलियों की तो बात ही क्या, श्री वृन्दावन जो रसमयी रासस्थली के कारण परम सुरम्य है तथा श्रीमान गोवर्धन भी जो रसमयी रास और युगल की रहस्यमयी केलि–क्रीड़ा के स्थल हैं, ये दोनों भी श्रीमुकुन्द के प्राणों से भी अधिक प्रिय श्रीराधाकुण्ड की महिमा के अंश के अंश लेश मात्र भी बराबरी नहीं कर सकते। ऐसे श्रीराधाकुण्ड में मैं आश्रय ग्रहण करता हूँ।



श्रीराधाकुण्ड गोवर्धन से प्राय: 3 मील उत्तर–पूर्व कोण में स्थित है। गाँव का नाम आरिट है। यहीं अरिष्टासुर का वध हुआ था। कंस का यह अनुचर बैल या साँड का रूप धारण कर कृष्ण को मारना चाहता था, किन्तु कृष्ण ने यहीं पर इसका वध कर दिया था। वृन्दावन और मथुरा दोनों से यह 14 मील की दूरी पर अवस्थित है। श्रीराधाकुण्ड श्रीराधाकृष्ण युगल के मध्याह्रक–लीलाविलासका स्थल है। यहाँ श्रीराधाकृष्ण की स्वच्छन्दतापूर्वक नाना प्रकार की केलि–क्रीड़ाएँ सम्पन्न होती हैं। जो अन्यत्र कहीं भी सम्भव नहीं है। इसलिए इसे नन्दगाँव, बरसाना, वृन्दावन और गोवर्धन से भी श्रेष्ठ भजन का स्थल माना गया है। इसलिए श्रीराधाभाव एवं कान्ति सुवलित श्री चैतन्य महाप्रभु ने स्वयं इस परमोच्च भावयुक्त रहस्यमय स्थल का प्रकाश किया है। उनसे पूर्व श्रीमाधवेन्द्रपुरी , श्रीलोकनाथ गोस्वामी, श्रीभूगर्भ गोस्वामी श्री ब्रज में आये और कृष्ण की विभिन्न लीलास्थलियों का प्रकाश किया, किन्तु उन्होंने भी इस परमोच्च रहस्यमयी स्थली का प्रकाश नहीं किया। स्वयं श्रीराधाकृष्ण मिलिततनु श्रीगौरसुन्दर ने ही इसका प्रकाश किया।

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