Wednesday, October 5, 2011

नन्दगाँव / Nandganv

नन्दगाँव ब्रजमंडल का प्रसिद्ध तीर्थ है। मथुरा से यह स्थान 30 किलोमीटर दूर है। यहाँ एक पहाड़ी पर नन्द बाबा का मन्दिर है। नीचे पामरीकुण्ड नामक सरोवर है। यात्रियों के ठहरने के लिए धर्मशाला हैं।
भगवान कृष्ण के पालक पिता से सम्बद्ध होने के कारण यह स्थान तीर्थ बन गया है। नन्दगाँव में ब्रजराज श्रीनन्दमहाराज जी का राजभवन है। यहाँ श्रीनन्दराय, उपानन्द, अभिनन्द, सुनन्द तथा नन्द ने वास किया है, इसलिए यह नन्दगाँव सुखद स्थान है। [1]
गोवर्धन से 16 मील पश्चिम उत्तर कोण में, कोसी से 8 मील दक्षिण में तथा वृन्दावन से 28 मील पश्चिम में नन्दगाँव स्थित है। नन्दगाँव की प्रदक्षिणा (परिक्रमा) चार मील की है। यहाँ पर कृष्ण लीलाओं से सम्बन्धित 56 कुण्ड हैं। जिनके दर्शन में 3–4 दिन लग जाते हैं।
देवाधिदेव महादेव शंकर ने अपने आराध्यदेव श्रीकृष्ण को प्रसन्न कर यह वर माँगा था कि मैं आपकी बाल्यलीलाओं का दर्शन करना चाहता हूँ। स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने नन्दगाँव में उन्हें पर्वताकार रूप में स्थित होने का आदेश दिया। श्रीशंकर महादेव भगवान के आदेश से नन्दगाँव में नन्दीश्वर पर्वत के रूप में स्थित होकर अपने आराध्य देव के आगमन की प्रतीक्षा करने लगे। श्रीकृष्ण परम वैष्णव शंकर की अभिलाषा पूर्ण करने के लिए नन्दीश्वर पर्वत पर ब्रजवासियों विशेषत: नन्दबाबा, यशोदा मैया तथा गोप सखाओं के साथ अपनी बाल्य एवं पौगण्ड अवस्था की मधुर लीलाएँ करते हैं।

द्वापरयुग के अन्त में देवमीढ़ नाम के एक मुनि थे। उनकी दो पत्नियाँ थीं। एक क्षत्रिय वंश की, दूसरी गोप वंश की थीं। पहली क्षत्रिय पत्नी से शूरसेन तथा दूसरी गोपपत्नी से पर्जन्य गोप पैदा हुये। शूरसेन से वसुदेव आदि क्षत्रिय पुत्र उत्पन्न हुए। पर्जन्य गोप कृषि और गोपालन के द्वारा अपना जीवन निर्वाह करते थे। पर्जन्य गोप अपनी पत्नी वरीयसी गोपी के साथ नन्दीश्वर पर्वत के निकट निवास करते थे। देवर्षि नारद भ्रमण करते–करते एक समय वहाँ आये। पर्जन्यगोप ने विधिवत पूजा के द्वारा उनको प्रसन्न कर उनसे उत्तम सन्तान प्राप्त करने के लिए आशीर्वाद माँगा। नारद जी ने उनको लक्ष्मीनारायण मन्त्र की दीक्षा दी और कहा, इस मन्त्र का जप करने से तुम्हें उत्तम सन्तान की प्राप्ति होगी। नारद जी के चले जाने पर वे पास ही तड़ाग तीर्थ में स्नान कर वहीं गुरुप्रदत्त मन्त्र का प्रतिदिन नियमानुसार जप करने लगे। एक समय मन्त्र जप के समय आकाशवाणी हुई कि- हे पर्जन्य! तुमने ऐकान्तिक रूप में मेरी आराधना की है। तुम परम सौभाग्यवान हो। समस्त गुणों से गुणवान तुम्हारे पाँच पुत्र होंगे। उनमें से मध्यम पुत्र नन्द होगा, जो महासौभाग्यवान होगा। सर्वविजयी, षडैश्वर्यसम्पन्न, प्राणीमात्र के लिए आनन्ददायक श्रीहरि स्वयं उनके पुत्र के रूप में प्रकट होंगे। ऐसी आकाशवाणी सुनकर पर्जन्यगोप बहुत प्रसन्न हुए। कुछ दिनों के पश्चात उन्हें पाँच पुत्र और दो कन्याएँ पैदा हुई। वे कुछ और दिनों तक नन्दीश्वर पर्वत के निकट रहे, किन्तु कुछ दिनों के बाद केशी दैत्य के उपद्रव से भयभीत होकर वे अपने परिवार के साथ गोकुल महावन में जाकर बस गये। वहीं मध्यमपुत्र नन्दमहाराज के पुत्र के रूप में स्वयं भगवान श्रीकृष्णचन्द्र प्रकट हुए।

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